Monday, December 13, 2010

तेज़ आर्थिक विकास और यहाँ तक की परिवार के स्तर पर पर्याप्त मात्र में खाद्यान्न उपलब्ध होने भर से स्थाई और संतोषजनक पोषण स्तर सुनिश्चित नहीं किया जा सकता. इस नीति (विकास की नीति) के कुछ दूरगामी प्रभाव भले हों, लेकिन फिलहाल कुपोषण के चक्रव्यूह में फँसी आबादी को कोई राहत मिलती नहीं दिखती. इस वंचित वर्ग के पास जीने के लिए बहुत कम आयु है पर कम उम्र में मर जाने के लिए बहुत कुछ है.

(राष्ट्रीय पोषण नीति १९९३)



भूतकाल में लोकतंत्र को राजनीतिक लोकतंत्र के रूप में पहचाना गया, जिसमे मोटे तौर पर एक व्यक्ति का एक मत होता है. किन्तु मत का उस व्यक्ति के लिए कोई मतलब नहीं होता जो निर्धन और निर्बल है, या जो भीख है और भूख से मर रहा है.

(पंडित जवाहर लाल नेहरु, २५ फ़रवरी १९५६)


जो गरीब लोग इधर से उधर भटक रहे हैं, जिनके पास कोई काम नहीं है, जिन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती और जो भूख से मर रहे हैं, जो निरंतर कचोटने वाली गरीबी के शिकार हैं, वे संविधान या उसकी विधि पर गर्व नहीं कर सकते.

(उप राष्ट्रपति डा. राधाकृष्णन)