Wednesday, December 31, 2008

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तुम्हारा नही होते जाना



बेहद दर्दनाक है अब यह मान लेना
कि स्याही के प्रवाह पर बन गये हैं
नफे-नुकसान के बांध,
सड़ गई है वह नदी
जो सींचा करती थी
आशाओं को,
पर तुम चुप हो
बस बहाने बनाकर,
तुमने भी छाप दिये हैं
विकास के सरकारी बयान,
साथी, विज्ञप्ति से परे हटकर
कभी यूं ही चले आते
हमारी जड़ों की गहराई में झांकनें,
यही पूछने चले आते
कि मेरे आंगन की तुलसी,
मिट्टी की महक
आम के झुरमुटों से झांकती धूप
और ख्वाजा की दरगाह का
क्या मोल लगा विकास के नाम पर,
तूमने यह भी नही पूछा
कि कहां डूब गई गांधी की मूर्ति,
और विस्थापित हो गये हैं हम
अपनी उम्मीदों के गांव से
सत्ता ने तय कर दिया है मुआवजा
मिला एक झूठ जिन्दगी के एवज में,
पर तुमने कभी नही पूछा
मेरा कोई सवाल,
तुम्हारा चुप रह जाना है
संभावनाओं का खत्म हो जाना,
पर संघर्ष जारी रहेगा
अब तुम्हारे खिलाफ़ भी

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