बाज़ार में
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मैं नही मरता
खेतों के सूखने पर भी,
मैं लड़ता अन्याय के खिलाफ़
गरीब होकर भी,
मेरी गर्दन तनी रहती बेखौफ़
चाहे लोग मुझे कहते औरत,
मैं बढ़ाता अपनी जिन्दगी
भ्रूण के आगे भी,
मैं खड़ा रहता मुठ्ठियां भींच कर
बहुत सी बंदूकों के सामने,
मैं निपट लेता हर सवाल से
चाहे कितना भी कठिन होता जवाब,
मेरे साथ अगर खड़ी होती
तुम्हारी कलम,
बहुत खतरनाक है
कलम का बाजार में खड़े हो जाना
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