Thursday, January 22, 2009

मैं क्यों बोलूं

मैं क्या बोलूं ..... ?

शहर के बाग से
तोड़ लिये किसी ने फूल
मेरे सामने
मैने सोचा मैं क्यों बोलूं।
जड़ दिये
बच्चे को थप्पड़ चार
मेरे सामने
मैने सोचा मैं क्यों बोलूं।
जानता था मैं उस किसान को
जिसकी जमीन पर जल रही है
भट्टी शराब की
मेरे सामने
मैने सोचा मैं क्यों बोलूं।
खींचते हुये निकल गये आंचल
राह चलती औरत का दो जवान
मेरे सामने
मैने सोचा मैं क्यों बोलूं।
मैं नहीं खोज पाया
अपना रिष्ता उन सबसे,
फिर एक दिन खड़ा था बुल्डोजर
मेरे अपने घर के सामने
मैं सोच रहा था अब मैं क्या बोलूं।

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