Thursday, April 30, 2009

समाज

महिला स्वास्थ्य और समाज - 2


महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में महिलाओं के स्वास्थ्य के मुद्दे पर कार्य कर रही सर्च संस्था के निष्कर्ष बताते हैं कि 92 फीसदी महिलायें किसी न किसी प्रजनन अथवा यौन सम्बन्धी संक्रमण की शिकार हैं। सामुदायकि व्यवहार के अध्ययनों से पता चलता है कि कपड़ों पर नजर आने वाले दागों के साथ-साथ इसे महिलाओं की शारीरिक कमजोरी के साथ भी जोड़कर देखा जाता है। यूं तो इस श्वेत प्रवाह से शरीर के अवशिष्ट पदार्थ ही महिलाओं के शरीर के साथ बाहर आते है। किन्तु सामाजिक स्तरों पर इसे स्त्री की शक्ति और ताकत के बह जाने के रूप में परिभाषित किया जाता है। साथ ही यह भी माना जाता है कि महिलाओं के शरीर में यौन सम्बन्धी अपेक्षायें पुरूषों से ज्यादा होती हैं और इसी 'गर्मी' के कारण श्वेत स्त्राव होता है। जिसे फिर नियंत्रित करने के लिये गर्मी पैदा करने वाले खाने के उपयोग पर प्रतिबंध लगया दिया जाता है। तब महिलाओं को दूध, क्रीम, अण्डे या गुड़ से बने खाद्य पदार्थ खानों को नहीं मिलते हैं। इस तमाम विसंगतिपूर्ण व्यवहारों का परिणाम यह होता है कि महिलायें शारीरिक रूप से कमजोर होती जाती हैं और उनकी प्रजनन क्षमता पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में स्वास्थ्य एवं रोगोपचार का जिक्र आते ही कई तरह के विचार पैदा होते हैं, लेकिन इनमें आयुर्वेद, सिध्द, यूनानी और तिब्बती चिकित्सा प्रणाली जैसे परंपरागत तरीकों पर लोगों का यकीन साफ तौर पर उभरकर आता है। इसकी एक खास वजह यह है कि ये लोग स्वास्थ्य परंपराएं समाज में गहरी पकड़ बना चुकी हैं। समय के साथ इन परंपराओं ने आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की चुनौतियों के मुताबिक स्वयं को ढाल लेने में भी कामयाबी प्राप्त कर ली है। आम आदमी के लिए लोक स्वास्थ्य परम्पराओं का अर्थ बीमारियों को दूर कर जीवन देने वाले इलाज से जुड़ा हुआ है। खासतौर पर महिलाओं के लिए तो यह जिंदगी की उन चुनौतियों के समान है जो उसके रोजमर्रा के स्वास्थ्य से जुड़ी हैं और इनसे निपटने के लिए वे इन्हीं परम्पराओं पर आधारित तकनीकों का सहारा लेती हैं। उनके लिए इन परम्पराओं से जुड़ी धारणाएं अब अंधविश्वास से भरे उपायों, टोटकों, लोक रीतियों और भ्रांतियों का पर्याय बन चुकी हैं।अपने आज में हम यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि गर्भवती होने से लेकर प्रसव होने के बाद तक की स्थिति में स्त्री शरीर के भीतर घटने वाली घटनाओं पर समाज और सामाजिक व्यवहार ने कितने व्यापक तरीकों से नियंत्रण कर रखा है। सवाल अभी यह नहीं है कि यह व्यवहार सही है अथवा गलत; पर बड़ा सवाल यह है कि इस पूरी प्रक्रिया में महिलायें कहां हैं?
सचिन कुमार जैन (विकास संवाद)

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