Tuesday, April 28, 2009

समाज

महिला स्वास्थ्य और समाज - 1


औरत के नजरिये से समाज एक अलग ही रूप में नजर आता है। वह वैसा रचनात्मक और स्वस्थ्य नहीं होता जिस तरह यह पुरूषों के लिये होता है। यहां महिलाओं के लिये गरीबी शायद एक बड़ा बोझ नहीं है परन्तु हर माह, माहवारी के दौर से गुजरना और उनके गुप्तांगों से होने वाले श्वेत द्रव के बहाव के बोझ से वे दोहरी हुई जाती हैं। विज्ञान के नजरिये से तो यह बहुत गंभीर समस्या नहीं है परन्तु समाज इसे स्त्री के चरित्र, उसके भाग्य और जीवन की स्वच्छता से जोड़कर परिभाषित करता है।यह सही है कि प्राकृतिक रूप् से नियमित होने वाली इन प्रक्रियाओं को यदि गंभीरता से न लिया जाये तो यह जानलेवा बीमारियों का रूप ले लेती हैं। और यह बीमारियाँ प्रजनन मार्ग में सक्रमण के रूप में सामने आती हैं। महिलाओं के शरीर में घटने वाली शारीरिक घटनाओं को इतने अलग-अलग रूपों में परिभाषित किया गया है कि उन पर अब खुलकर चर्चा करना भी बुरा ही माना जाता है। यह चर्चा चरित्र के हनन से जुड़ जाती है। यूं तो चिकित्सक इसे एक सामान्य शारीरिक प्रक्रिया मानते हैं और जानकार कहते हैं कि जिस तरह पौधों से नियमित रूप से फलों की उत्पत्ति होती है वैसे ही श्वेत स्त्राव या माहवारी एक औरत की प्रजनन शक्ति का प्रमाण होती है। सामाजिक स्तर पर इसे खुलकर स्वीकार नहीं किया जाता है। सफेद पानी के बवाह की शुरूआत से किशोरी के मन को जीवन भर का बोझ ही मिलता है। वह तनाव में होती है। उसे लगता है कि उसने कुछ ऐसा गलत काम या व्यवहार किया है जिससे उसके जननांगों में से इस तरह का पानी बह रहा है। परिवार की सयानी महिलायें यहां तक की उसकी मां भी इस स्थिति को तकनीकी रूप में समझाने के बजाय अपनी बेटी पर बंदिशें लगाना शुरू कर देती है। वे मानती है कि यदि अब उसकी जवान होती बेटी के किसी पुरूष से शारीरिक सम्बन्ध बन गये तो वह गर्भवती हो जायेगी और यह एक अमित कलंक होगा। अब एक तनाव भीतर पनपने लगता है, एक असुरक्षा आपसी सम्बन्धों में आ जाती है और बेटी के प्रति सहज ही अविश्वास की भावना पनपने लगती है। गांव की दाईयें बताती हैं कि माहवारी या सफेद पानी के बहाव के बारे में कोई चर्चा नहीं करता है। इसका पता तो घर के आंगनों में सूख रहे कपड़ों पर पड़े दागों से ही चलता है। सामान्यत: मासिक धर्म के दौरान पहे गये कपड़ों को अंधेरे में ऐसे स्थान पर सुखाया जाता है जहां परिवार या रिश्तेदारों का आना-जाना नहीं होता है। इसका परिणाम यह होता है कि ऐसे वस्त्रों के धूप में न सूखने या सही ढंग से साफ न होने के कारण संक्रमण का खतरा बढ़ता जाता है। और शरीर की एक सामान्य प्रक्रिया औरत के स्वास्थ्य के लिये अभिशाप बन जाती है।


सचिन कुमार जैन (विकास संवाद)

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